ये भी पढ़े: कृषि प्रधान देश में किसानों की उपेक्षा असंभवभारतवर्ष की सांस्कृतिक विरासत बहुत पुरानी वह धनी है तथा इसने पुरे विश्व को प्रभावित किया है। कृषि यहां के सांस्कृतिक विकास में अग्रणी भूमिका में रहीं हैं। कृषि को यहां प्राचीन काल से ही केवल व्यवसाय के रूप में नही देखकर एक जीवन पद्धति के रूप में मान्यता मिली है। लेकिन मध्यकाल से पिछली शताब्दी के मध्य तक विदेशी आक्रमणकारी द्वारा भारतीय संस्कृति को अत्यधिक नुकसान पहुंचा गया इससे कृषि वह किसान की हालत काफी प्रभावित हुई। देश विदेशों पर खाद्यान्न के लिए निर्भर हो गया था। किसान समाज को जाति, धर्म वह क्षेत्र के आधार पर बांट दिया गया। व्यापारी वर्ग वह उस समय के शासकों ने खुब आर्थिक रूप से ठगा। जिससे कृषि वह किसान की हालत जर्जर हो चुकी थी। देश की 80 प्रतिशत जनसंख्या कृषि कार्यों में लगीं होने के बावजूद देशवासियों को विदेशों पर खाद्यान्न के लिए निर्भरता और किसानों की आर्थिक बदहाली स्वतंत्र भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी। इस चुनौती का सामना करने में वह किसानों को जागरूक वह एकजुट और प्रौत्साहित करने के साथ साथ सरकार तक उनकी आवाज पहुंचाने की जो भुमिका स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह ने निभाई वह अद्वितीय थी। उन्होंने कृषि वह किसान के महत्व के हर मुद्दे को बखुबी सरकार के सामने उठाने वह हल करने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनको पुरे भारत का किसान अपना नेता मानते थे तथा उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग का अनुसरण करते थे। स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह के लिए किसानों, कृषि वह देश के हित सर्वोपरि थे। किसानों को समझाने के लिए वो कड़वी सच्चाई को प्रस्तुत करने में पिछे नहीं रहते थे और किसान भी उनके साथ दिल से जुड़े हुए थे। वो किसानों को जोर देकर कहते थे कि पहले तो किसानों को आपसी मतभेद भुलाकर अपने वह देश के आर्थिक विकास के लिए एक जुट होने की आवश्यकता है फिर उनको उत्पादन से अधिक विपणन वह बाजार पर ध्यान देने की आवश्यकता है। यह आवश्यकता आज के परिपेक्ष में और अधिक महत्वपूर्ण हो गई है तथा बहुसंख्यक किसान आज भी यही मार खा रहे हैं ।
ये भी पढ़े: किसान दिवस के आयोजन के दौरान merikheti.com ने की मासिक किसान पंचायतकिसान भी उनकी एक आवाज सुनकर शान्ति पुर्ण वह अनुशासित ढंग से दिल्ली वोट क्लब पर उनकी आवाज में आवाज मिलाने के लिए पहुंच जाते थे। उनके वह किसानों के मध्य एक अजब गजब किस्म का संबंध था। इस संबंध और उनके महत्वपूर्ण कृषि, किसान वह ग्रामीण विकास के महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए सरकार ने उनके जन्मदिन 23 दिसम्बर को किसान दिवस के तौर पर मनाना शुरू किया। इससे किसानों को उनके दिखाए गए मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है तथा किसान जाति, धर्म, क्षेत्र वह दलगत राजनीति से उपर उठकर काम करने की प्रेरणा लेते हैं। आज हम उनको सच्ची श्रद्धांजलि देते हैं तथा सभी देशवासियों को आवान करते हैं कि हमें उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलना चाहिए और देश, समाज की निस्वार्थ सेवा करनी चाहिए। किसान वह कृषि के हित को सर्वोपरि रखते हुए आगे बढ़े।
खेती-किसानी के क्षेत्र में प्राचीन काल से पशुपालन विशेषकर गाय का विशेष महत्व रहा है। आज वंदना कुमारी दूध प्रसंस्करण के माध्यम से अच्छी कमाई कर अन्य महिलाओं को भी प्रेरित कर रही हैं।
बतादें, कि वंदना कुमारी ने गौ-पालन शुरू करने का फैसला लेने से पहले दो बार नहीं सोचा। जीवन में बेहतर उपलब्धि हांसिल करने का उनका दृढ़ संकल्प ही था, जिसने उनको गौ-पालन प्रारंभ करने के लिए प्रेरित किया।
एक गृहिणी के लिए जीवन में सब कुछ काफी सुगम नहीं था। कुछ नवीन करने के उनके जूनून ने समस्या और बाधाओं का सामना करने में काफी सहायता की।
कृषि विज्ञान केन्द्र (KVK), बांका (बिहार) की मदद के फलस्वरूप बन्दना को पारंपरिक फसलों के अतिरिक्त सफल डेयरी किसान के तोर पर स्थापित करने में सहयोग प्राप्त हुआ।
बतादें, कि 13 एकड़ कृषि योग्य जमीन और 8 एकड़ बंजर जमीन वाले परिवार में आय बढ़ाने के लिए अपने परिवार की मदद करना उनके लिए बड़ी मजबूरी थी।
खेती में सक्रियता से भाग लेने के उपरान्त कृषि उत्पादकता को बेहतर करना वंदना का लक्ष्य बन गया था। बंदना ने साल 2011 में केवीके का भ्रमण करके और वैज्ञानिकों से मिलकर कृषि भूमि की उत्पादक क्षमता को बढ़ाने के संबंध में दिशा-निर्देश लिया।
इसके पश्चात कृषि विज्ञान केन्द्र से उनका जुड़ाव काफी बढ़ता गया और उत्पादकता बढ़ाने के लिए केवीके के वैज्ञानिकों द्वारा समयानुसार सही सलाह दी गई। केवीके के वैज्ञानिकों की मदद से वह अपनी कृषि योग्य भूमि की उत्पादकता में बढ़ोतरी करने में सफल हुई।
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वंदना ने समकुल बंजर जमीन में से 2.75 एकड़ को कृषि योग्य भूमि में परिवर्तित करने में सफलता हांसिल की। एक नया कीर्तिमान स्थापित करने का जज्बा रखने वाली वंदना ने खेती के दौरान केवीके की तकनीकी मदद से वर्ष 2012 में एक धान ओसाई मशीन को विकसित किया।
वंदना के नवाचार को परखते हुए एक विख्यात निजी कंपनी द्वारा महिंद्रा समृद्धि अवार्ड से उन्हें पुरस्कृत किया गया और सम्मान स्वरूप 51 हजार की नकद धनराशि प्राप्त हुई।
वंदना के गांव को National Innovative वित Climate Resilient Agriculture (NICRA) परियोजना के कार्यान्वयन हेतु चयन किया गया, जिसके तहत उन्होंने हाइड्रोपोनिक चारा उत्पादन, यूरिया से पुआल का उपचार, साइलेज बनाने के अतिरिक्त हरे चारे की उपज संबंधी तकनीकें सीखी और अपनाई। इसके अलावा कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा संचालित विभिन्न गतिविधियों में भी हिस्सा लिया।
NICRA परियोजना के अंतर्गत ग्रामीणों के लिए आयोजित किए जाने वाले कृषि गतिविधियों में बेहतर सहयोग देने के बाद वंदना ने विविधता लाने के लिए साल 2016 में गौपालन शुरू करने का निर्णय किया।
उन्होंने अपने पिता (पेशे से पशु चिकित्सक) से पशुपालन की बारीकियां सीखीं जो वंदना को असलियत में डेयरी फार्मिंग के लिए प्रेरित करने वाला साबित हुआ, उन्होंने दूध देने वाली 10 गायों को खरीदकर नया उद्यम शुरू किया।
प्रत्येक गाय व चारा उत्पादित 7-10 लीटर दूध के साथ उनकी गोशाला में औसत दूध उत्पादन लगभग 70-80 लीटर प्रति दिन प्राप्त होता था। वह अपनी गोशाला में उत्पादित दूध की मात्रा से संतुष्ट थीं।
लेकिन जब दूध बेचने की बात आई तो बंदना को खरीदार ढूंढने में कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ा। इसी दौरान केवीके के जरिए से वंदना को फरवरी, 2020 में "आय बढ़ाने के लिए दुग्ध उत्पाद विकास" विषय पर प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेने का अवसर मिला, जिसका आयोजन पश्चिम बंगाल पशु एवं मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय, मोहनपुर, नदिया, पश्चिम बंगाल द्वारा किया जा रहा था।